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दीवाली पर्व पर हाथ से बनाये दीपक, ताकि प्रदूषण रहित दिवाली मनाई जा सके

जसबीर कुमार |

बदलते परिवेश में लोकल फॉर वोकल को बढावा देने के लिए दशकों ने बजूरी गांव में एक परिवार काम कर रहा हैं. हमीरपुर के बजूरी गांव के धर्मपाल के द्वारा घर पर ही दीवाली पर्व के लिए दीपक बनाए है. ताकि दीवाली पर्व पर प्रदूषण रहित दीवाली मनाई जा सके. दीवाली पर्व के लिए धर्मपाल ने खासी तैयारी की है. और दीपकों के अलावा आरती, करवा का सामान बनाया है. जिसे बाजार में जाकर बेचा जा रहा है.

धर्मपाल ने बताया कि दीवाली के लिए हर साल ही विशेष तैयारी की जाती है और लोकल फार वोकल को बढावा देने के लिए काम किया जाता है. उन्होंने बताया कि पहले करवा चौथ के लिए मिट्टी से बनाया हुआ सामान की काफी बिक्री हुई है और अब दीवाली के लिए बहुत सारे आर्डर आए है. जिसके लिए दिन रात काम किया जा रहा है.

धर्मपाल ने बताया कि मिटटी से बने दीपकों और बाकी सामान को बेच कर अच्छा मुनाफा हर साल कमाते है और इस बार भी उम्मीद है कि दीवाली पर्व पर खूब सामान बिकेगा. उन्होंने लोगों से भी आवाहन किया है कि दीवाली पर मोमबतियों की जगह दीपक जलाए ताकि प्रदूषण रहित दीवाली मनाई जा सके.

आज के समय में नौजवान पुराने कामों को अपनाना नहीं चाहते है. लेकिन रोजी रोटी के लिए अपना स्वरोजगार अपना पडेगा. उन्होंने कहा कि आज के समय में नौकरी नहीं मिल रही है. इसलिए युवाओ को भी इस तरह के काम काज के लिए आगे आना चाहिए. धर्मपाल के बडे भाई जय सिंह का कहना है कि हर साल ही त्योहारों के मौके पर बढिया दीए बनाते है और लोग भी घर पर आकर खरीददारी करते है. धर्मपाल अच्छा काम कर रहे है और धर्मपाल को प्रशासन के द्वारा एक जगह दी जानी चाहिए. ताकि काम को और बढाया जा सकें.

वहीं, धर्मपाल की भाभी विमला देवी ने बताया कि बरसों से उनके देवर इस पौराणिक काम को कर रहे हैं. त्योहारों के मौसम में बाजार में हाथ से बनाई हुये दीपों की काफी डिमांड रहती है. उन्होंने कहा कि दिवाली को प्रदूषण रहित बनाने के लिए हाथ से बनाए हुए दीपकों का उपयोग करना चाहिए. मोमबत्ती या चाइनीस चीजों का उपयोग नहीं करना चाहिए. जिससे प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है.

वहीं 105 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने बताया कि सदियों से कुम्हार के काम को करते आ रहे है और प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि दीपक बनाने और दीवाली पर दीपक ही जलाने है